भारतीय समाज में आज भी संभोग को लेकर खुलकर बात नहीं की जाती है। परिवार में न बच्चे अपने माता-पिता से इस विषय पर बात करते हैं न ही माता-पिता बच्चों से चर्चा करते हैं। यही वजह होती है कि बच्चों यौन शिक्षा की जानकारी की जानकारी से दूर रखा जाता है । अगर बच्चों को उनकी उम्र के हिसाब से संभोग का जरुरी ज्ञान दिया जाए तो न केवल वे खुद को सुरक्षित कर पाएंगे बल्कि गुमराह होने से भी बच जाएंगे ।
आइये जानते है कि बच्चों के लिए क्यों जरुरी है यौन शिक्षा –
भारत में बढ़ते किशोरों के लिए, यौन शिक्षा हमेशा से एक विवादास्पद विषय रहा है। यहाँ पर दो प्रकार के लोग रहे हैं –
- एक इसके समर्थन में
- दूसरा इसके विरोध में
समय आ गया है कि हम अपने किशोरों के लिए यौन शिक्षा की आवश्यकता और महत्व को समझें, जो एक सामान्य, स्वस्थ और जागरूक व्यक्ति को विकसित करने में औपचारिक शिक्षा के रूप में आवश्यक है ।
- यौन शिक्षा क्यों जरुरी है
- इन क्षेत्रों के लिए यौन शिक्षा की अवधारणाओं का विकास किया जाना चाहिए
- लड़कियों के लिए यौन शिक्षा
- निष्कर्ष
यौन शिक्षा क्यों जरुरी है ?
बच्चों को शारीरिक और भावनात्मक रूप से शिक्षित करने के लिए एक सही माहौल को उपलब्ध कराने में समाज की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
जब एक लड़का या लड़की अपनी युवावस्था (किशोरावस्था) में प्रवेश कर रहा होता है तो उसको अपने शारीरिक परिवर्तनों और भावनात्मक परिवर्तनों के सभी पहलुओं के बारे में जानने की आवश्यकता होती है। यह जानकारी और जागरूकता उस युवा व्यक्ति के लिए बहुत जरूरी होती है, जो किशोरावस्था से गुजरने के बाद होने वाले परिवर्तनों के बारे में जान सके।
यह जानकारी और जागरुकता की निराशाजनक कमी के कारण ही ऐसा होता है कि बच्चे इसके परिणाम और उपाय को जाने बिना गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं जो कि यौन शोषण के कारण भावनात्मक और शारीरिक रूप से इसका शिकार हो जाते हैं और कभी-कभी शारीरिक रूप से अपने जीवन को बहुत बड़े संकट में डाल लेते हैं।
इसलिए समाज का यह कर्तव्य है कि वह युवावस्था के समस्त किशोर और किशोरियों को यौन शिक्षा से सम्बंधित सभी जानकारियां प्रदान करें, ताकि वह भी अनेक परिस्थियों से उत्पन्न समस्याओं के कारण और उससे संबंधित निवारण के लिए सुधारात्मक उपायों का प्रयोग कर सकें।
इन क्षेत्रों के लिए यौन शिक्षा की अवधारणाओं का विकास किया जाना चाहिए-
शारीरिक और मनोवैज्ञानिक अंतर की जानकारी के साथ-साथ संभोग की जानकारी देना। लड़के और लड़कियां शारीरिक रूप से कैसे भिन्न होती हैं और वे अलग-अलग उम्रों में अलग-अलग तरह व्यवहार क्यों करते हैं।
किशोरावस्था में शारीरिक परिवर्तनों के साथ-साथ मानसिक परिवर्तन भी समान रूप से होते हैं और ये परिवर्तन दोनों लिंगों में होते हैं, लड़कों और लड़कियों को इन समस्त परिवर्तनों से अवगत कराना चाहिए और लड़कियों को माहवारी के बारे में पूरी जानकारी देनी चाहिए तथा दोनों लिंगों में जो भी समान रूप से बदलाव होते हैं उन बदलावों को किशोरों द्वारा समझा जाना चाहिए, इसके साथ ही साथ लड़के किशोरवस्था में जिन स्थितियोंसे गुजरते हैं उनकी पूरी जानकारी देनी चाहिए, दोनों ही आमतौर पर संभोग और भावनात्मक परिवर्तन के बारे में पूरी तरह से अनजान होते हैं और यह एक बड़ी समस्या होती कि उनके साथ कैसे निपटा जाए।
लड़कियों के लिए यौन शिक्षा –
किशोरावस्था में लड़कियों को यौन शिक्षा देना बहुत जरुरी हो जाता है, क्योंकि इस समय लड़कियों के कई लड़के दोस्त होते हैं जिनके साथ वे स्कूल, ट्यूशन में ज्यादा समय बिताती हैं। ऐसे में अक्सर वे दोनों एक दूसरे की तरफ आकर्षित होने लगते हैं इसलिए उन्हें यौन शिक्षा देना बहुत ही जरूरी है। क्योंकि इसके बिना उनसे कई तरह की गलतियां हो सकती है। लड़कियों को यौन शिक्षा देने में उनकी माताओं का अहम रोल होता है। अक्सर लड़कियां इस उम्र में अपनी मां से हर बात शेयर करती है जिससे मां को यौन शिक्षा देने का मौका मिल जाता है।
एक लड़की का शरीर किशोरावस्था में विकसित होना शुरु हो जाता है,’लेकिन वह अपने अंदर होने वाले जैविक व भावनात्मक बदलावों को समझ नहीं पाती हैं। और वो इसका जिक्र अपनी सहेलियों से करती हैं लेकिन वे भी इसी दौर से गुजरती हैं इसलिए उनके द्वारा बताई गई बातें उसके समस्याओं को हल नहीं कर पाती हैं। इस उम्र में लड़कियों को सही गाइडलाइन की जरूरत होती है जो उन्हें उनके स्कूल व अभिभावक से मिल सकती है।
लड़कियों को यौन शिक्षा देने में उन्हें सबसे पहले मासिक धर्म के बारे में बताना चाहिए। कई बार माता-पिता के लिए यह काफी मुश्किल भरा होता है लेकिन यह जरूरी है कि लड़कियों को इसकी शिक्षा समय पर दी जाए। लड़कियों को सीधे व सरल ढ़ंग से संभोग की शिक्षा दी जानी चाहिए। कठिन व भारी शब्दों के प्रयोग से वह समझ नहीं पाएगी कि आप उसे क्या समझाना चाहते हैं।
निष्कर्ष –
यौन साक्षरता और यौन स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में माता-पिता और शिक्षकों दोनों की आवश्यक भूमिका है। हम मानते हैं कि माता-पिता को अंतरंग और यौन संबंधों के बारे में अपने बच्चों को सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों को प्रदान करने में प्राथमिक भूमिका निभानी चाहिए | स्कूलों और स्वास्थ्य पेशेवरों को यौन समाजीकरण में माता-पिता की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करना चाहिए और उनका समर्थन करना चाहिए। बदले में, माता-पिता को यौन शिक्षा प्रदान करने में स्कूलों का समर्थन करना चाहिए।
किशोरों के बीच स्वस्थ, जिम्मेदार यौन आचरण का समर्थन करने के लिए माता-पिता के साथ स्कूल के कार्यक्रमों का परामर्श और भागीदारी आवश्यक है।
स्कूलों में यौन शिक्षा को सामाजिक और पारिवारिक मूल्यों का सम्मानपूर्वक और व्यावसायिक रूप से व्यवहार करना चाहिए। हमारा मानना है कि शिक्षकों के लिए कक्षा में चर्चा के माध्यम से, संवेदनशील और सम्मानजनक तरीके से विभिन्न विश्वास प्रणालियों का पता लगाना उचित है। यौन शिक्षा को माता-पिता के साथ और धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संगठनों में यौन मूल्यों के बारे में युवा संवाद को बढ़ावा देना चाहिए, जबकि कौशल प्रशिक्षण और तथ्यात्मक जानकारी प्रदान करना चाहिए जो सभी किशोरों की आवश्यकता है।
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